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दीपावली महोत्सव
२००४
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आज खुशी से
मिल कर हम तो
मन का दीप जलायेंगे
हर मौसम के फूल मँगाकर
इस घर को महकायेंगे
जीवन के आँगन में देखो
एक नई सी लहर उठी
तोड़ के तारे आसमान से
इस धरती को सजाएँगे
सोए अरमाँ जाग उठे हैं
और तमन्ना जवां हुई
जो भी मिलेगा इन राहों पर
दिल में उसे बिठाएँगे
भूल न जाना उन बच्चों को
बस्ती में जो भूखे हैं
जाति धर्म के भेद छोड़ के
सब को गले लगाएँगे
छोटी छोटी खुशी बाँट के
ग़म को दिल से दूर करो
नफ़रत करने वालों को भी
अब हम प्यार सिखाएँगे
दीप जलाकर हम हर घर में
कुछ तो उजाला कर लेंगे
ऐसी दीवाली हर बस्ती में
हम तो रोज़ मनाएँगे
—श्रीकृष्ण माखीजा |
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दीपावली
हाथ भर चू्ड़ियाँ
सतरंगी चुनर
माथे पर रोली
और चंदन का टीका
आँखों में दमक गए
दीयों की लौ
खिल गया चेहरा
भर गया उजास
केले के पत्ते
आमों का पल्लव
भर दिया लावा से
कुल्हिया और चकिया
अँजुरी में भर लैया
हथेली भर फूल
धूप की सुगंध
और बत्ती का धुआँ
सिर नवाये पूजा
लक्ष्मी और गणेश
आँगन में बस गया
तारों का गाँव
—प्रत्यक्षा
दीपावली की रात
दीवाली की रात
दीवाली की रात
हम भी एक दिया जलाएँगे
प्रकाश चहुं ओर फैलाएँगे
मेरा दिया है मेरा पौधा
जो आँधियों से न बुझ पाएगा
हाँ, दीवाली की रात
जब धुएँ के बादल को
आसमान में उड़ता पाऊँगा
घर के पिछवाड़े जा
वृक्षारोपण कर आऊँगा
—सौरभ आर्य |