|
दीपावली महोत्सव
२००४
|
|
|
|
आज अगर आए प्रियतम – कुछ पलक झपकना
देख पिया की निर्मल मूरत तुम जल उठना
और देखना चकित भ्रमित आखें वह सुन्दर
फिर बतलाना कौन दीप है उज्ज्वल कितना
दीप तुम जलते रहना
आएँगे वह तब जानूँगी – है दीवाली
ओढूँगी आँचल–सी रात – अमावस वाली
और चमकते हुए दीयों की माला डाले
आस की कोहनी टिका मुँडेर पर, मुझ संग बैठे रहना
दीप तुम जलते रहना
भूल चली हैं आँखें, देखो पलक झपकना
तुम क्या जानो ताप प्रीत की – दुष्कर साधना
जल उठना मेरी आँखों में, जब वो आएँ
मेरी चौखट पर मुझ में तुमको भी पाएँ
और कहूँ क्या बात प्रीत की कठिन है कहना
दीप तुम जलते रहना
— जया पाठक |
|
दिये जलाओ
संकलन
|
लाल सूरज हँसता है |
|
|
माथे पर सुहाग सूरज – चमकता है,
नाक के नाकबेसर का स्वर्ण – सूरज दिपता है,
हथेलियों पर लाल – सूरज दमकता है,
दोनों हथेलियों से मैं आँखों को छूती हूँ
आँखों में स्वप्न–सूरज महकता है,
मिट्टी के दीयों से आँगन को भरती हूँ
मन आँगन में दीप–सूरज जलता है,
लिपे हुए आँगन में रंगोली सजाती हूँ
हृदय सागर में फूल–सूरज खिलता है,
रोली, अक्षत, चंदन से आराध्य को पूजती हूँ
घर घर में पावन दीप–पर्व मनता है,
हर्ष उल्लास छलकता है
घर बार जगमगाता है
लाल सूरज हँसता है
—प्रत्यक्षा सिन्हा
|
|
|
दीपावली कुछ कम
देखी
त्योहार की सजी दुकानों पर
भेंट खरीदते लोग बहुत दिखे।
स्वागत कक्षों में तोहफे
हाथ बदलते बहुत दिखे।
पर दिल के डब्बों में
मुहब्बत, अबकी, कुछ कम देखी।
लक्ष्मी–गणेश का पूजन
करते लोग हर घर–बार दिखे,
आरतियों में घंटियाँ, झूमते
जन भी कुछ और दिखे
पर इस संगीत या शोर में
दिल की खनक कुछ कम देखी।
पटाखों के धमाके भी
अबकी बढ़के ज़ोरदार दिखे।
उनमें अपना धन दर्शाने को
कुछ ज़्यादा मन तैयार दिखे।
पर इस अद्भुत रोशनीबाज़ी में
मस्ती दिल में कुछ कम देखी।
शहर घुमकर देखा जब
बत्तियों के करतब बेज़ोड़ दिखे।
घर घर के चौखट जगमग
हर बार से बढ़के इस बार दिखे।
पर रोशनी की बिसात पर
दीपों की अवली कुछ कम देखी।
दीपावली कुछ कम देखी।
—विवेक ठाकुर
दीवाली आई
दीवाली आई दीवाली आई।
खुशियों की सौगातें लाई।
झिलमिल झिलमिल रात है भाई।
दीवाली आई दीवाली आई।
रेले मेले और तमाशे।
नाच गाने ढोल बताशे।
फुलझडियाँ और पटाखे
चिंगारियाँ और धमाके।
बच्चे बैठे कान दबाके
हँसना खिलना और ठहाके।
हर चहरे पर रौनक छाई।
झिलमिल झिलमिल रात है भाई।
दीवाली आई दीवाली आई।
रात्रि में करते सब लक्ष्मी पूजन।
खाने में बनते ढ़ेरों व्यंजन।
लड्डू पेड़े और बतासे
चीनी के खिलोने गुड़ के ताशे।
खाते भर भर खूब मिठाई।
झिलमिल झिलमिल रात है भाई।
दीवाली आई दीवाली आई।
— गौरव ग्रोवर
|