अनुभूति में
प्रत्यक्षा की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इच्छा
एक ख़ामोश चुप लड़की
कोई शब्द नहीं
छुअन
तांडव
दो छोटी कविताएँ
प्रतिध्वनि
पीले झरते पत्तों पर
मल्लिकार्जुन मंसूर
माँ
मेरी छत
मोनालिसा
मौन
की भाषा
याद
रात पहाड़ पर
लाल बिंदी
सुबह पहाड़ पर
संकलन में-
दिये जलाओ-
लाल सूरज हँसता है
प्रणय गीत
दीपावली
मौसम-
मौसम
गुलमोहर-
गुलमोहर: तीन दृश्य |
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लाल बिंदी
लाल बिंदी
जो तुमने लगा दी थी
एक बार
उँगली को गोल
भौंहो के ठीक बीच
बडे एहतियात से
फिर थाम कर
मेरा चेहरा
निहारा था
मंत्रमुग्ध
आज सूरज
बन कर
धूप का गोल टुकड़ा
सज जाता है
मेरे माथे पर
खुली खिड़की से
तुम झाँकते हो अंदर
मैं पशोपेश में
सोचती हूँ
तुम हो
या कोई ढीठ सूरज
जो रंग रहा है
मेरे कपोलों को
बेधड़क शैतानी से
९ सितंबर २००६ |