अनुभूति में
प्रत्यक्षा की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इच्छा
एक ख़ामोश चुप लड़की
कोई शब्द नहीं
छुअन
तांडव
दो छोटी कविताएँ
प्रतिध्वनि
पीले झरते पत्तों पर
मल्लिकार्जुन मंसूर
माँ
मेरी छत
मोनालिसा
मौन
की भाषा
याद
रात पहाड़ पर
लाल बिंदी
सुबह पहाड़ पर
संकलन में-
दिये जलाओ-
लाल सूरज हँसता है
प्रणय गीत
दीपावली
मौसम-
मौसम
गुलमोहर-
गुलमोहर: तीन दृश्य |
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पीले झरते
पत्तों पर
पीले झरते पत्तों पर
चल कर देखा कभी?
फिर अपने पाँव देखे क्या?
तलवों पर याद छोड़ती है
अपने अंश,
लाल आलते-सी
छाती में उठती कोई हूक
रुलाई-सी
जब फूटती भी नहीं
तब समझ लेना
कोई अनकही याद
फिर तुम्हारे आँचल का कोना
पकड़ कर खींचेगी।
तुम तैयार तो हो
न भी हो तो क्या
पांव के नीचे झरे पत्ते हैं
और ऊपर
किसी दरख्त का पुख्ता शाख
९ सितंबर २००६
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