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अनुभूति में प्रत्यक्षा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
इच्छा
एक ख़ामोश चुप लड़की
कोई शब्द नहीं
छुअन
तांडव
दो छोटी कविताएँ
प्रतिध्वनि
पीले झरते पत्तों पर
मल्लिकार्जुन मंसूर
माँ
मेरी छत
मोनालिसा

मौन की भाषा
याद
रात पहाड़ पर
लाल बिंदी
सुबह पहाड़ पर

संकलन में-
दिये जलाओ- लाल सूरज हँसता है
प्रणय गीत

दीपावली
मौसम- मौसम
गुलमोहर- गुलमोहर: तीन दृश्य

मल्लिकार्जुन मंसूर

उनकी आवाज़ गूँजती नहीं,
धीरे से आकर हल्के कदमों से
कच्ची नींद में सोए शिशु को
ज्यों माँ ओढ़ाती है
चादर हौले से, कहीं जग न जाए
वैसे ही
ढक देती है, मन को,

पानी के सतह पर
धीरे से पैठ जाना
हर साँस पर
थोड़ा और नीचे
जब तल पर पहुँचो
तो शरीर भर
खुशबूदार पानी
जहाँ फूलों की पंखुड़ियाँ
तैरती है

उस निशब्द संसार में
एक तान
एक आलाप
सिर्फ आँख ही तो बंद है
मन खुला है
विस्तार, अपरिमित
उस सुर के संसार में
खड़ा याचक
थोड़ा और माँगता है मन

१६ मई २००५

 

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