रात,
पहाड़ पर
टिमटिमाती रौशनी, चीखती हवा
श्वेत श्याम च्रित्र की तरह बिखरा था
वादियों का सन्नाटा
सुबह की रौशनी, धूप की चमक
फूलों की बहार
किसने छुपा दी है
रात का सर्द अंधकार
दबे पाँव कब कमरे में
घुस आया था
मेरी हड्डियाँ कंपकंपा गई
थी
ठंड से
या फिर डर से
सुबह सच था
या ये रात सच है
मैंने चुपचाप आँखें बंद कर ली थी
ठंड की चादर कस कर लपेट ली थी
सुबह के इंतजार में
|