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अनुभूति में प्रत्यक्षा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
इच्छा
एक ख़ामोश चुप लड़की
कोई शब्द नहीं
छुअन
तांडव
दो छोटी कविताएँ
प्रतिध्वनि
पीले झरते पत्तों पर
मल्लिकार्जुन मंसूर
माँ
मेरी छत
मोनालिसा

मौन की भाषा
याद
रात पहाड़ पर
लाल बिंदी
सुबह पहाड़ पर

संकलन में-
दिये जलाओ- लाल सूरज हँसता है
प्रणय गीत

दीपावली
मौसम- मौसम
गुलमोहर- गुलमोहर: तीन दृश्य

प्रतिध्वनि

मेरे शब्दों को छुआ है तुमने
उँगलियों के पोरों से

हरेक हाशिये को
तब तक, जब तक
वो रेशे-रेशे में तेरे बस न जाए
रेशमी चादर-सा चारों ओर लिपट न जाए

और तब
हवा सरसराती है
शब्द फुसफुसाते हैं
हँसते हैं कभी खिलखिलाकर
कभी धीमे-धीमे गुनगुन गुनगुन

आकुल व्याकुल, होश मदहोश
पहाड़ी वादियों में गूँजती है
ध्वनि प्रतिध्वनि
मैं आकंठ डूब जाती हूँ

मुझे पता है
क्योंकि
मैंने भी छुआ है
ऐसे ही
तुम्हारे शब्दों को

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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