अनुभूति में
प्रत्यक्षा की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इच्छा
एक ख़ामोश चुप लड़की
कोई शब्द नहीं
छुअन
तांडव
दो छोटी कविताएँ
प्रतिध्वनि
पीले झरते पत्तों पर
मल्लिकार्जुन मंसूर
माँ
मेरी छत
मोनालिसा
मौन
की भाषा
याद
रात पहाड़ पर
लाल बिंदी
सुबह पहाड़ पर
संकलन में-
दिये जलाओ-
लाल सूरज हँसता है
प्रणय गीत
दीपावली
मौसम-
मौसम
गुलमोहर-
गुलमोहर: तीन दृश्य |
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माँ
रात को अंधेरे घर में
जो रोशनी जलती है
चूल्हे की तपती आग से
जो सोंधी खुशबू आती है
कड़ी कठिन-सी धूप में
जो छाया बन जाती है
बरसाती बौछार पड़े तब
मुझे समेटे बाहों में भरती है।
तब मैं देखा करती तुमको
आँखों में सौ प्यार भरे
देखकर उस प्यारे चेहरे में
झलकता उससे ज़्यादा लाड़ मुझे
तुम से ही मैं गढ़ी बनी हूँ
तुमने ही है रचा मुझे
माँ माँ कह कर हृदय बोलता
तुमसे ही है प्रीत मुझे
९ मई २००५ |