जिन्दा रहने के
लिए किसी मज़दूर के घर
शाम को बनती हुई
मोटी रोटियों के प्रति
उसके दिन भर के भूखे
बच्चे की चाह की तरह
मैं चाहता हूँ
तुम्हें।
धान और गेंहूँ के साथ-साथ
तुमको भी रोपकर
अपने खेत में
मैं जता देना चाहता हूँ लोगों को
कि तुम भी
रोटी की तरह ज़रूरी हो
ज़िन्दा रहने के लिए।
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