एक दिन
एक दिन विकसित समाज में
कोई दबाएगा बिजली का खटका तो
उसकी बत्ती से रौशनी की जगह
जूते बरसेंगे
इसबार पाँव की जगह
वे सिर पर सवार होंगे
कोई टेबल लैम्प जलाएगा
पढ़ने के लिए
उसके सामने फैल जाएगी
बस्ते की स्याही
कोई कम्प्युटर का खटका दबाएगा
तो उसके कम्प्युटर के स्क्रीन पर
उभरेगा हुक्का खुद को गुड़गुड़ाते हुए
उसके तम्बाकू के नशे में
पागल हो जाएगा कम्प्युटर का सीपीयू
कोई हीटर का खटका दबाएगा
चाय बनाने के लिए
तो हीटर पर रखी केतली में
चूल्हे के खूनभरे आँसू उबलेंगे
नहीं बचेंगे खिड़कियों में
झरोखे
दरवाजों की ओट में गहन अन्धकार होगा
नीम की छाँव में सिर्फ धूप होगी
खेतों के गर्भ में खदबदाने के लिए
कुछ भी नहीं बचेगा
फिर दबाते रहिए बिजली के खटके
गाड़ते जाएँ विकास के झंडे
कहीं कुछ नहीं होगा
जीवन जैसा। |