मैं और तुम
मैं रोपूँगा
धान का नन्हा पौधा
तुम सहला-सहलाकर
खड़ी करना फ़सल
मैं रोपूँगा
गुलाब की कलम
तुम तैयार करना फुलवारी
मैं गढूँगा दो पहिये चार पाँव
तुम बुहारना पगडंडियाँ
न मैं थकूँगा रोपते-गढ़ते
न तुम थकना सहलाते-सवाँरते
हमें साथ-साथ चलना है
ड्योढ़ी से क्षितिज तक। |