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अनुभूति में प्रदीप मिश्र की रचनाएँ

कविताओं में-
तुम नहीं हो शहर में
कनुप्रिया
ज़िन्दा रहने के लिये
दुख जब पिघलता है
पहाड़ी नदी की तरह
पायदान पर
फिर कभी
फिर तान कर सोएगा
फूलों को इंतज़ार है
महानगर
मेरे समय का फलसफा
मैं और तुम
वायरस

स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ
सफेद कबूतर

डूबते हुए हरसूद पर-
एक दिन
जब भी कोई जाता
पाकिस्तान से विस्थापित
फैली थी महामारी
बढ़ रहा है नदी में पानी
सुनसान सड़क पर

संकलन में
नया साल- यह सुबह तुम्हारी है

  फैली थी महामारी

एक बार फैली थी महामारी
देखते-देखते
पूरा गाँव खाली हो गया था

यहाँ तक कि जानवर भी नहीं बच पाए थे
महामारी के प्रकोप से
एक बार आया था
बहुत भयानक भूकम्प
धरती ऐसी काँपी थी कि
नेस्तनाबूत हो गया था पूरा गाँव

एक बार गाँव के बीचो-बीच
फूट पड़ा था ज्वालामुखी
जलकर राख हो गए थे
गाँव के बाग-बगीचे तक
एक बार आया था प्रलय
ऐसा महाप्रलय कि
उसमें समा गया था पूरा गाँव

इसबार न फैली महामारी
न भूकम्प से थरथराई धरती
न ज्वालामुखी से उमड़ा आग का दरिया
न ही हुआ प्रलय का महाविनाशक तांडव
फिर भी डूब गया एक गाँव हरसूद

हरसूद डूब गया
अपनी सभ्यता-परम्परा और
जीवन की कलाओं के साथ।

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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