कविताओं में- तुम नहीं हो शहर में कनुप्रिया ज़िन्दा रहने के लिये दुख जब पिघलता है पहाड़ी नदी की तरह पायदान पर फिर कभी फिर तान कर सोएगा फूलों को इंतज़ार है महानगर मेरे समय का फलसफा मैं और तुम वायरस स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ सफेद कबूतर
डूबते हुए हरसूद पर- एक दिन जब भी कोई जाता पाकिस्तान से विस्थापित फैली थी महामारी बढ़ रहा है नदी में पानी सुनसान सड़क पर संकलन में नया साल- यह सुबह तुम्हारी है
अभी अभी खिले गुलाब के फूलों को इंतजार है
एक प्रेमी युगल का जिनके बीच वे बन सकें सेतु।
एक माली का जिसके ममता भरे हाथों से सीखें प्रतीक बनना।
अंगुली थामें चलना सीख रहे बच्चे का जिसको दे सकें खिलखिलाहट।
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