पायदान पर
ठहरो पृथ्वी
ठहरो ऋतुओं
ठहरो हवाओं
ठहरो और
इस रचनाकार से मिलकर जाओ
यह ऋतुओं का राजा बसंत है
इसके बिना अधूरी है
तुम्हारी सारी सुंदरता
सृजनशीलता तो असंभव
यह बसंत है
जिसने अपने पीठ पर लाद रखा है
विचारों और भावनाओं के ग्रह-नक्षत्र
इसकी आँखों में
एक तरफ़ सूरज जड़ा है
दूसरी तरफ़ चंद्रमा
सुनता है हवाओं के स्पंदन
और ठीक उस समय
जब सृजन के लिए सबसे बेहतर मौसम होता है
पीठ पर लदे ग्रह-नक्षत्रों को उतारकर रखता है
ज़मीन पर और चुपके से
सारे ग्रह-नक्षत्र उतर जाते हैं
धरती के गर्भ में
जिनके अंकुरण के साथ-साथ
नये-नये ब्रह्मांड फोड़ते हैं कोपल
नये-नये ब्रह्मांड रचनेवाला
रचनाकार
खड़ा है आज जीवन के
पचहत्तरवे पायदान पर
इतनी ऊँचाई पर खड़े रचनाकार को
अपनी शुभकामनाएँ देते जाओ
ठहरो पृथ्वी
ठहरो ऋतुएँ
ठहरो हवाएँ
(हमारे समय के समर्पित
रचनाकर्मी एवं संस्कृतकर्मी श्री बसंत राशिनकर के पचहत्तरवे
जन्मदिन पर शुभकामनाओं के साथ )
२४ जनवरी २००६ |