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अनुभूति में प्रदीप मिश्र की रचनाएँ

कविताओं में-
तुम नहीं हो शहर में
कनुप्रिया
ज़िन्दा रहने के लिये
दुख जब पिघलता है
पहाड़ी नदी की तरह
पायदान पर
फिर कभी
फिर तान कर सोएगा
फूलों को इंतज़ार है
महानगर
मेरे समय का फलसफा
मैं और तुम
वायरस

स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ
सफेद कबूतर

डूबते हुए हरसूद पर-
एक दिन
जब भी कोई जाता
पाकिस्तान से विस्थापित
फैली थी महामारी
बढ़ रहा है नदी में पानी
सुनसान सड़क पर

संकलन में
नया साल- यह सुबह तुम्हारी है

  मेरे समय का फलसफा

इकट्ठे हुए थे सारे जीव एक जगह
फुनगी पर बैठी चिड़िया
शहंशाहों की तरह गर्वोन्नत शेर
रेत पर पड़ा मगरमच्छ
इधर-उधर रेंगते कीड़े-मकौडे
हरी-हरी कालीन जैसी बिछी घास
और सिंहासन जैसे टीले पर बैठा मनुष्य

प्रकृति के सारे जाने-अनजाने जीव
इकट्ठे हुए थे एक जगह
सबकी समस्या जीवन की
जीवन शैली की
और जीवित बने रहने की

इस विकट समस्या बहस में उपस्थित
हर जीव एक दूसरे के लिए भोजन की थाली था
कोई भी एक नष्ट होता तो
दूसरा स्वयं ही नष्ट हो जाता
फिर कैसे कोई किसी को खाता
और अगर खाता नहीं तो जीवित कैसे रहता

मनुष्य ही ऐसा था जो किसी का भोज्य नहीं था
वहाँ उपस्थित सबकुछ उसके लिए भोज्य था
जानता था वह जीवन जीने की कला
इसलिए टीले पर बैठा मुस्करा रहा था

नहीं सूझा किसी को इस विकट समस्या का हल
तब मनुष्य ने ही सुझाया
प्रेम में सबकुछ जायज होता है
प्रेम में कोई नष्ट नहीं होता
जितना व्यापक प्रेम उतना ही ज्यादा जीवन

इतना सुनते ही
बकरी को घास से प्रेम हो गया
और वह प्रेम से चरने लगी घास
शेर को बकरी से हो गया प्रेम
और वह प्रेम से बकरी को खा गया

प्रेम का सिलसिला खूब फला-फूला
अब कहीं भी कभी भी किसी को
किसी से हो जाता है प्रेम।

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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