महानगर
देवेंद्र की गच्ची से महानगर
की
बहुत सारी खिड़कियाँ दिखाई दे रही हैं
जिनके पीछे
घंटो से सज रही हैं गृहणियाँ
उन्हें डिनर के लिए होटल जाना है
पति शेयर के उतार-चढ़ाव के
साथ
टेलीविजन के सामने उठ-बैठ रहे हैं
बच्चे इंजीनियर डाक्टर बनने
की होड़ में
घंटों और मिनटों में वयस्क हो रहे हैं
बूढ़े रिटायरमेंट के बाद का
जीवन
सज़ा की तरह भुगत रहे हैं
कुछ उच्चवर्गीय मल्टियों के
खिड़कियों के पीछे
संगीतकार विदेशी धुनों के साथ
साजों के लय-ताल ठीक कर रहे हैं
हिंदी के प्रतिष्ठित कवि
अंग्रेज़ी कविताओं से नोट ले रहे हैं
मुल्लाजी बीच में रोक कर नमाज
मोबाइल पर बात कर रहे हैं
पुजारी इंटरनेट पर
सत्यनारायण की कथा करवा रहे हैं
एक छत पर छुटभैया नेता
अपने भाषण का रियाज कर रहा है
सामने मुहल्ले के सारे गुंडे-बदमाश बैठे हैं
सीढ़ियों के आड़ में
दो किशोर मन देह भाषा में
वेलेंटाइन डे मना रहे हैं
पड़ोस की गच्ची पर खड़े सज्जन
देखकर मैं मुस्कराया
जवाब में उनकी आँखों ने तरेरकर घूरा
फिर संवाद की गरज से मैंने किया नमस्कार
इस बार वे मुँह में भरे सिगरेट के धुएँ को
मेरी तरफ़ धकेल कर अंदर चले गए
सिगरेट के धुएँ में खाँसते
हुए
महानगर की घुटन महसूस कर रहा हूँ।
(गच्ची मालवी भाषा का शब्द
है, जिसका अर्थ बहुमंजिली इमारतों की बाल्कनियाँ है)
२४ जनवरी २००६ |