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अनुभूति में प्रदीप मिश्र की रचनाएँ

कविताओं में-
तुम नहीं हो शहर में
कनुप्रिया
ज़िन्दा रहने के लिये
दुख जब पिघलता है
पहाड़ी नदी की तरह
पायदान पर
फिर कभी
फिर तान कर सोएगा
फूलों को इंतज़ार है
महानगर
मेरे समय का फलसफा
मैं और तुम
वायरस

स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ
सफेद कबूतर

डूबते हुए हरसूद पर-
एक दिन
जब भी कोई जाता
पाकिस्तान से विस्थापित
फैली थी महामारी
बढ़ रहा है नदी में पानी
सुनसान सड़क पर

संकलन में
नया साल- यह सुबह तुम्हारी है

  स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ

स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ
जब फर्राटे भरती हुई
गुज़रती हैं पास से तो
लगता है जैसे
एक झोंका गुज़र गया हो
मोगरे की सुगंध से गमकता

स्कूटर चलानेवाली लड़कियाँ
पसंद नहीं करती है किसी से पिछड़ना
वे सबको पीछे छोड़ती हुई
बहुत आगे निकल जाती हैं
इतना आगे कि पीछे मुड़कर देखने पर
सिर्फ उनकी गति दिखाई देती है

सबको पीछे छोड़नेवाली इन लड़कियों को
महिला विमर्श के बारे में
पता है कि नहीं, पता नहीं
लेकिन वे जानती है कि
किस मोड़ से
कितनी गति से मुड़ना चाहिए
कब इतना चरमरा कर
ब्रेक लगाना चाहिए कि
स्कूटर के साथ-साथ
समय भी ठहर जाए

समय को लगाम की तरह पकड़ी हुई
इन लड़कियों को
इतिहास के जिस पन्ने पर दर्ज किया जाएगा
वहाँ महाभारत के कृष्ण भी मिलेंगे
अपनी गीता के इस संशोधन पर मुदित होते हुए।

२४ जनवरी २००६

 

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