कनुप्रिया
एक अदना सा मन
ढुलक कर ठहर गया है
तुम्हारी ओट में
तुम्हारी नज़रें टहलने लगीं
हैं
रसोई से बैठक तक
बैठक से अटारी तक
ओट/झरोखे खोजती हुईं
सपने पसर गए हैं
अन्तरिक्ष से अन्तस तक
पलकें सीखती जा रही हैं
दिन-प्रतिदिन अदब
एक चाहा क्षण देखने के लिए
तुम्हारा घंटों अनचाहा देखना
मुझे आतंकित करता है कनुप्रिया!
कहीं ठहरा हुआ अदना
सुगबुगाने तो नहीं लगा है
तुम्हारी ममतामई छाँव में।
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