वायरस
ब्रह्म की कोई जाति नहीं होती
किसी राष्ट्र के नागरिक नहीं होते हैं वे
किसी भी धर्म का पालन नहीं करते
वे पूरी तरह से जीवित भी नहीं होते
और उनको मारना अत्यंत जटिल होता है
विज्ञान और कंप्यूटर की भाषा में
वो वायरस कहलाते हैं
जिस जाति में लगते हैं
उसका तहस नहस कर देते
जिस राष्ट्र में लगते हैं
उसे मिटा देते हैं दुनिया के नक्शे से
जिस धर्म में लगते हैं
उसे मनुष्यता के खिलाफ़ कर देते हैं
उनके प्रजनन के ही परिणाम है वे वायरस
जो आजकल कंप्युटरों में लगते हैं
ऐसे खतरनाक वायरस पहले भी थे
लेकिन उनकी जगह
किसी भी सभ्यता में नहीं थी
समाज बाहर थे
उनके विरुध होती थी सारी सभ्यता
संक्रमण होते ही
उनको नेस्तनाबूत कर दिया जाता था
आजकल समाज में
औज़ार की तरह उपस्थित है वे
उनकी जाति सर्वोपरि है
सबसे ज़्यादा राष्ट्रियता उनमें देखी जाती है
वे जिस धर्म की ध्वजा उठाते हैं
उस धर्म पर लोग गर्व करते हैं
वे चुनाव लड़ते हैं
सत्ता पर काबिज़ होते हैं
भयानक नर संहार करते हैं
विचारों के जीवाश्मों को खोद-खोदकर
इतिहास में खोह बनाते हैं
इन खोहों में तलाशते हैं अंधकार
उनके जीवन के लिए अंधकार ज़रूरी है
सूरज की रोशनी में तो वे चौंधिया जाते हैं
कभी-कभी अंधे भी हो जाते हैं।
वे रूप धरते हैं तरह-तरह के
प्रेमिकाओं की तरह ह्रदय में दाखिल होते हैं
पिता की तरह उँगलियों को थाम लेते हैं
माँ की तरह बहते हैं
दिल से दिमाग तक
इस खतरनाक वायरसों की चर्चा
पूरी दुनिया में है
इनकी पहचान के सारे सूत्र
असफल हो रहे है लगातार
प्रयोगशालाओं में प्रतिरोधक टीके
तैयार किए जा रहे हैं
वैज्ञानिकों ने दिन रात एक कर दिया है
फिर भी बढ़ती जा रही है
उनकी जनसंख्या
हर रोज़ यह ख़बर ज़रूर होती
है
कि फलाँ वायरस रोधक प्रयोगशाला का
उद्घाटन फलाँ वायरस ने किया
फलाँ वायरस रोधी अभियान के लिए
फलाँ वायरसों की संस्था ने फंड दिया
श्रेष्ठ वायरस प्रतिरोधी टीका विकसित करनेवाले
वैज्ञानिकों के सम्मान समारोह की अध्यक्षता
वायरसों के प्रमुख ने किया
इस वर्ष के सारे नोबल सम्मान
उन लोगों को दिए गए
जो इन भयानक वायरसों के संक्रमण से
दुनिया को बचाने में लगे हैं
अभी जूरी के बारे में
किसी को कुछ पता नहीं है
सम्मानित लोगों के कर्मफल के बारे में
सिर्फ इतना पता है कि
कर्मणेवा अधिकारस्तु माफलेषु कदाचन।
२४ जनवरी २००६ |