सुनसान सड़क पर
सुनसान सड़क पर छूटा हुआ है
एक पैर का जूता
उसे इन्तजार है
हमसफर पाँव का
टहलने जाना चाहता है
पान की दुकान तक
एक किनारे औंधा पड़ा हुक्का
सुगबुगा रहा है
कोई आकर उसे गुड़गुड़ाए
तो वह फिर जी जाएगा
भर देगा रग-रग में तरंग
ठंडा पड़ रहा है चूल्हा
खेतों में खटकर लौटी भूख
को देखकर जल उठेगा
लपलपाते हुए
खूँटी पर टँगा हुआ बस्ता
अपने अन्दर की स्याही से
नीला पड़ रहा है
उसे लटकने के लिए
नाजुक कन्धा मिल जाए तो
उसे बना देगा कर्णधार
उजड़ती हुई खिड़कियों के
झरोखों
और दरवाज़ों की ओट में पल्लवित प्रेम
विस्थापित हो रहा है
अभी भी मिल जाएँ आतुर निगाहें तो
वे फिर रच देंगे हीर-रांझा
नीम की छाँव में
धूप के चकत्तों का आकार बढ़ता जा रहा है
खेतों के गर्भ में
बहुत सारी उर्वरा खदबदा रही हैं
आखिरी तारीख का ऐलान हो चुका
है
एक दिन इन सब पर
फिर जाएगा पानी
इस पानी से बनेगी बिजली
जो दौड़ेगी
नगर-नगर
गाँव-गाँव
चारो तरफ विकास ही विकास होगा |