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अनुभूति में प्रो. 'आदेश' हरिशंकर
की रचनाएँ-

गीतों में-
आया मधुमास

अमल भक्ति दो माता
एक दीप
चन्दन वन
जीवन और भावना
धरती कहे पुकार के
नया उजाला देगी हिन्दी
रश्मि जगी

लौट चलो घर
वन में दीपावली
विहान हुआ
सरस्वती वंदना

कविताएँ-
जीवन
प्रश्न
मृत्यु
संपूर्ण

संकलन में-
ज्योतिपर्व  - दीपक जलता
          - मधुर दीपक
          - मत हो हताश
मेरा भारत  - मातृभूमि जय हे
जग का मेला -चंदामामा रे
नया साल   -शुभ हो नूतन वर्

 

वन में दीपावली

एक दीपक प्यार का।

श्रीराम उवाच:
हम जलाएँ एक दीपक प्यार का।
पंथ आलोकित करे संसार का।।

रश्मियाँ जिसकी ज्वलंत पुनीत हों,
जो न रवि-सुत से कभी भयभीत हों,
चूर कर दें दर्प घन अंधियार का।।


हर हृदय में प्रेम हो, सम भाव हो,
षड् विकारों का न रंच प्रभाव हो,
हो नहीं संघर्ष अब अधिकार का।।


हर मनुज ही हर मनुज का मित्र हो,
हर मानस में आर्ष भाव पवित्र हो,
भाव भी उपजे न नर-संहार का।।


नाम ही आतंक का हम मेंट दें,
कालिका को कलुषितों की भेंट दें,
ले अटल संकल्प भव-उद्धार का।।


लक्ष्मण -उवाच:
पाप का कर खंड-खंड घमंड दें,
आज हर उद्दंड को ही दंड दें,
क्षेत्र दंडक वन बने प्रतिकार का।।


दुष्ट के हित दौप-लौ अंगार हो,
आज चंडी का नया सिंगार हो,
हम करें अब यज्ञ खल-संहार का।।


सीता - उवाच:
आज फूँकें शंख नूतन क्रांति का,
पुनि करें शासन प्रतिष्ठित शांति का,
भाव जागे विमल जग-परिवार का।।


अब न तम आलोक को आहत करे,
आपदा कोई न खंडित व्रत करे,
दें सजा जग, दीप - पारावार का।।


श्रीराम - उवाच:
दीन-दुखियों के बनें प्रिय! बंधु हम,
बिंदु को भी दें बना बल-सिंधु हम,
दें मिटा अस्तित्व अत्याचार का।।

१०
विश्व सीता की करे आराधना,
पूर्ण होवे हर कृषक की साधना,
हो सदा कल्याण इस संसार का।।

११
ऋतु शरद का पूर्ण अभिनंदन करें,
हम पुन: नव शस्य का वंदन करें,
विश्व को वर दें समृद्धि अपार का।।

१२
कार्तिक की है अमावस्या घनी,
है सकल जग को समस्या सी बनी,
रूप रख लें, ज्योति के अवतार का।।

(रघुवंश शिरोमणि महाकाव्य से)

२४ अक्तूबर २००६

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