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अनुभूति में प्रो. 'आदेश' हरिशंकर
की रचनाएँ-

गीतों में-
आया मधुमास

अमल भक्ति दो माता
एक दीप
चन्दन वन
जीवन और भावना
धरती कहे पुकार के
नया उजाला देगी हिन्दी
रश्मि जगी

लौट चलो घर
वन में दीपावली
विहान हुआ
सरस्वती वंदना

कविताएँ-
जीवन
प्रश्न
मृत्यु
संपूर्ण

संकलन में-
ज्योतिपर्व  - दीपक जलता
          - मधुर दीपक
          - मत हो हताश
मेरा भारत  - मातृभूमि जय हे
जग का मेला -चंदामामा रे
नया साल   -शुभ हो नूतन वर्

 

लौट चलो घर

सांझ हो चली, लौट चलो घर।

अब न शेष है आतप रवि में,
सुषमा रही न दिन की छवि में,
मिला ज्योति को देश-निकाला,
घनी तमिस्रा छाती भू पर।।

हर किसान का हल ठहरा है,
निष्क्रियता का ही पहरा है,
छाती है जड़ता हर मन पर,
पुनि प्रमाद की बाँट धरोहर।।

देश और देशान्तर घूमे,
सपनों ने सच के दृग चूमे,
इससे पहले तिमिर निगल ले,
पथ पाना हो जाए दुष्कर।।

पीकर दिन का घोर हलाहल,
पुन: मर गया है कोलाहल,
लगे टिमटिमाने दीपक, जिस
की समाधि पर सहम-सहम कर।।

(रविप्रिया काव्य संग्रह से)

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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