लौट चलो घर
सांझ हो चली, लौट चलो घर।
अब न शेष है आतप रवि में,
सुषमा रही न दिन की छवि में,
मिला ज्योति को देश-निकाला,
घनी तमिस्रा छाती भू पर।।
हर किसान का हल ठहरा है,
निष्क्रियता का ही पहरा है,
छाती है जड़ता हर मन पर,
पुनि प्रमाद की बाँट धरोहर।।
देश और देशान्तर घूमे,
सपनों ने सच के दृग चूमे,
इससे पहले तिमिर निगल ले,
पथ पाना हो जाए दुष्कर।।
पीकर दिन का घोर हलाहल,
पुन: मर गया है कोलाहल,
लगे टिमटिमाने दीपक, जिस
की समाधि पर सहम-सहम कर।।
(रविप्रिया काव्य संग्रह से)
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