आया मधुमास
आया मधुमास मदन जागा।
सोई अभिलाषायें जागीं,
हो चले चित्त चल अनुरागी।
कामिनियों के कटाक्षों से,
आहत होते फिर बड़भागी।
रख पाँव शीर्ष पर द्रुत गति से,
मेधाजिर से संयम भागा।।
भर गई चपलता भावों में,
आता न हृदय बहलावों में।
रसराज निरंकुश शासक-सा,
छाया संचारी भावों में।
इच्छाओं से फिर विवेक ने,
अब गत अनुशासन-कर माँगा।।
आओ, हम-तुम भी प्यार करें,
जीवन का नव शृंगार करें।
हो कालातीत, चेतना खो,
ऋतु के अनुकूल विहार करें।
कहता है कण-कण झूम-झूम,
वह मरा, न जो अब भी जागा।।
(अनुराग महाकाव्य से)
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