अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रो. 'आदेश' हरिशंकर
की रचनाएँ-

गीतों में-
आया मधुमास

अमल भक्ति दो माता
एक दीप
चन्दन वन
जीवन और भावना
धरती कहे पुकार के
नया उजाला देगी हिन्दी
रश्मि जगी

लौट चलो घर
वन में दीपावली
विहान हुआ
सरस्वती वंदना

कविताएँ-
जीवन
प्रश्न
मृत्यु
संपूर्ण

संकलन में-
ज्योतिपर्व  - दीपक जलता
          - मधुर दीपक
          - मत हो हताश
मेरा भारत  - मातृभूमि जय हे
जग का मेला -चंदामामा रे
नया साल   -
शुभ हो नूतन वर्

 

आया मधुमास

आया मधुमास मदन जागा।

सोई अभिलाषायें जागीं,
हो चले चित्त चल अनुरागी।
कामिनियों के कटाक्षों से,
आहत होते फिर बड़भागी।

रख पाँव शीर्ष पर द्रुत गति से,
मेधाजिर से संयम भागा।।

भर गई चपलता भावों में,
आता न हृदय बहलावों में।
रसराज निरंकुश शासक-सा,
छाया संचारी भावों में।

इच्छाओं से फिर विवेक ने,
अब गत अनुशासन-कर माँगा।।

आओ, हम-तुम भी प्यार करें,
जीवन का नव शृंगार करें।
हो कालातीत, चेतना खो,
ऋतु के अनुकूल विहार करें।

कहता है कण-कण झूम-झूम,
वह मरा, न जो अब भी जागा।।

(अनुराग महाकाव्य से)

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter