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बाल प्रश्न |
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माँ! अल्मोड़े में आए थे
जब राजर्षि विवेकानंदं,
तब मग में मखमल बिछवाया,
दीपावलि की विपुल अमंद,
बिना पाँवड़े पथ में क्या वे
जननि! नहीं चल सकते हैं?
दीपावली क्यों की? क्या वे माँ!
मंद दृष्टि कुछ रखते हैं?"
"कृष्ण! स्वामी जी तो दुर्गम
मग में चलते हैं निर्भय,
दिव्य दृष्टि हैं, कितने ही पथ
पार कर चुके कंटकमय,
वह मखमल तो भक्तिभाव थे
फैले जनता के मन के,
स्वामी जी तो प्रभावान हैं
वे प्रदीप थे पूजन के।"
-सुमित्रानंदन पंत
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दीपक जलता
दीपक जलता अँधियारे में,
जलकर कहता बात रे!
कभी न हटना अपने पथ से,
आए झंझावात रे!
दीवाली हर दिन है उसको,
जिसे मिल गई शांति रे!
जिसे सताती नहीं ईर्ष्या,
जिसे न भाती भ्रांति रे!
प्रबल प्रभंजन डरते उससे,
डरती है बरसात रे!!
जो खुशियाँ भर दे जीवन में,
वह लक्ष्मी महान रे!
जो कि बुद्धि विकसित कर देवे,
वह गणेश भगवान रे!
नारी लक्ष्मी, गुरु गणेश हैं,
दु:ख में थामें हाथ रे!!
भेद-भाव का भूत भगाकर,
भरो मन में प्रीत रे!
बैर-भाव जड़ से विनष्ट कर,
गाओ प्रेम-प्रगीत रे!
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
सब आपस में भ्रात रे!!
दूर करो मन का अँधियारा,
भर कर आत्म-प्रकाश रे!
प्रेम-प्रदीप जलाकर प्यारे,
जग का करो विकास रे!
देती है आदेश यही, यह
दीवाली की रात रे!!
- प्रो. 'आदेश' हरि शंकर
(लक्ष्मी माता गीत-संग्रह से)
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