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चाँद
का कुर्ता
हठ कर
बैठा चाँद एक दिन,
माता से यह बोला,
"सिलवा दो माँ, मुझे ऊन का
मोटा एक झिंगोला।
सन-सन चलती हवा रात भर,
जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह
यात्रा पूरी करता हूँ।
आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो, कुर्ता
ही कोई भाड़े का।"
बच्चे की सुन बात कहा
माता ने, "अरे सलोने!
कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।
जाड़े की तो बात ठीक हैं,
पर मैं तो डरती हूँ।
एक नाप में कभी नहीं
तुझको देखा करती हूँ।
कभी एक अंगुल भर चौड़ा,
कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है
और किसी दिन छोटा।
घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन
ऐसा भी करता है,
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है।
अब तू ही तो बता, नाप
तेरी किस रोज लिवायें,
सी दें एक झिंगोला जो हर
रोज बदन में आयें?"
- रामधारी सिंह 'दिनकर'
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चन्दा मामा
चन्दा मामा! चन्दा मामा!
चन्दा मामा रे!
मेरा मुन्ना बुला रहा है,
जल्दी आ जा रे!!
चाँदी का चम्मच,
चाँदी का प्याला,
चाँदी - से चावल,
अमृत डाला,
चन्दा मामा! चन्दा मामा!
चन्दा मामा रे!
मेरे मुन्ने को जल्दी से,
खीर खिला जा रे!!
कर दे तू सच्चे,
सपने सलोने,
ला दे तू मुन्ने को,
सुन्दर खिलौने,
चन्दा मामा! चन्दा मामा!
चन्दा मामा रे!
मेरा मुन्ना आँसू ढारे,
उसे हँसा जा रे!!
मिलने को व्याकुल है,
मुन्ना राजा,
मुन्ने की बँहियों में
आके समा जा,
चन्दा मामा! चन्दा मामा!
चन्दा मामा रे!
मेरे मुन्ने को परियों की
कथा सुना जा रे!!
चन्दन का पलना,
रेशम की डोरी,
गायें सितारे,
'आदेश' लोरी,
चन्दा मामा! चन्दा मामा!
चन्दा मामा रे!
मेरे मुन्ने को जल्दी से,
आन सुला जा रे!!
- प्रो. 'आदेश' हरिशंकर
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ध्रुव तारा
नभ
में चमकें नीले तारे,
लगते आँखों को हैं प्यारे
उत्तर में देखो तो दिखते
कई एक चमकीले तारे
इन तारोँ के बीच सुशोभित
ध्रुव जैसे प्रणम्य सितारे
ध्रुव के चक्कर रोज लगाते
सात बड़े चमकीले तारे
यह कहलाते सप्तऋषि हैं
कहते वेद पुराण हमारे
--प्रभु दयाल
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चंदा मामा दूर के
चंदा मामा दूर के
छिप-छिप कर खाते हैं हमसे
लड्डू मोती चूर के
लम्बी-मोटी मूँछें ऐंठे
सोने की कुर्सी पर बैठे
धूल-धूसरित लगते उनको
हम बच्चे मज़दूर के
बातें करते लम्बी-चौड़ी
कभी न देते फूटी कौड़ी
डाँट पिलाते रहते अक्सर
हमको बिना कसूर के
मोटा पेट सेठ का बाना
खा जाते हम सबका खाना
फुटपाथों पर हमें सुलाकर
तकते रहते घूर के
-डॉ० अश्वघोष |