अमल भक्ति दो माता!
अपनी अमल भक्ति दो माता!
सिंधु-सुते! जननी, जगत्राता।।
१
मन को दग्ध न करे वासना,
अंतर-दंश न करे कामना,
रूप-रंग-रति-काम न मोहे,
विषयों से विरक्ति दो माता।।
२
रोग न तन में भरे विवशता,
भोग न दुर्बल कर दें क्षमता,
स्वस्थ रहे तन, स्वस्थ रहे मन,
अक्षय प्राण-शक्ति दो माता।।
३
सता न पाए क्षुधा-पिपासा,
टूटे कभी न स्नेह, न आशा,
सुख-समृद्धि-सम्मान मिले पर,
सच्ची अनासक्ति दो माता।।
३
असत अविद्या की अंधियारी,
कर न सके जीवन को भारी,
दूर रह सकूँ पाप-पंक से,
ऐसी सदा युक्ति दो माता।।
४
बहुत हो चुका अभिनय जननी!
काटो अब भव - भय की रजनी,
निर्मल ज्योति दिखा सद पथ पर,
पीड़ा से विमुक्ति दो माता।।
५
जन्म-मृत्यु के बंधन छूटें,
हरें न मन आकर्षण झूठे,
जगें भाव "आदेश" अनूठे,
अब तो पूर्ण मुक्ति दो माता।।
(देशांतर नामक काव्य-संग्रह से)
२४ अक्तूबर २००६
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