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अनुभूति में प्रो. 'आदेश' हरिशंकर
की रचनाएँ-

गीतों में-
आया मधुमास

अमल भक्ति दो माता
एक दीप
चन्दन वन
जीवन और भावना
धरती कहे पुकार के
नया उजाला देगी हिन्दी
रश्मि जगी

लौट चलो घर
वन में दीपावली
विहान हुआ
सरस्वती वंदना

कविताएँ-
जीवन
प्रश्न
मृत्यु
संपूर्ण

संकलन में-
ज्योतिपर्व  - दीपक जलता
          - मधुर दीपक
          - मत हो हताश
मेरा भारत  - मातृभूमि जय हे
जग का मेला -चंदामामा रे
नया साल   -शुभ हो नूतन वर्

 

एक दीप

एक अकिंचन दीप हूँ, दिनकर न समझो।।

ज्योति-तरु का एक नन्हा-सा सुमन हूँ,
वक्ष पर तम के सजा आलोक-क्षण हूँ,
नैमिषिक संगीत हूँ, अक्षर न समझो।।

मैं तिमिर-वधु का सुनहरा, शशि वदन हूँ,
घन तमा के दग्ध अन्तर की जलन हूँ,
पीर-पूरित गीत हूँ, मधुकर न समझो।।

मैं प्रतीक्षा हूँ किसी की, युगों-युगों की,
मैं परीक्षा हूँ किसी के अनुभवों की,
प्रीति हूँ पावन, अनल घर न समझो।।

देवता कहकर न पूजो रेणु कण को,
सिन्धु आभा का कहो मत ज्योति-तृण को,
पुण्य प्रहरी हूँ, तिमिर-अनुचर न समझो।।

लाज करती लाज, संयम सिर झुकाता,
पूज मुझको युग, मधुर वरदान पाता,
मिलन का शृंगार, पीड़ा-शर न समझो।।

दें भले रवि-शशि न त्रिभुवन को उजाला,
मैं करूँगा ज़िन्दगी का मुँह न काला,
हूँ अगर लघु क्या हुआ, जर्जर न समझो।।

हूँ नहीं अराध्य, बस आराधना हूँ,
ज्योति-कुल की सतत् सीमित साधना हूँ,
बिन्दु हूँ, आलोक का निर्झर न समझो।।

मत कहो भगवान, मेरे पद न पूजो,
तुम मुझे वरदान कह, तम से न जूझो,
मैं धरा का मीत लघु, अम्बर न समझो।।

दीप्ति का दर्पण, निशा-दृग-ज्योति हूँ मैं,
लघु समर्पण हूँ, प्रणय का स्रोत हूँ मैं,
शील का स्वामी, मुझे तस्कर न समझो।।

(आकाश गंगा काव्य-संग्रह से)

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