अनुभूति में
प्रो. 'आदेश' हरिशंकर
की रचनाएँ-
गीतों में-
आया मधुमास
अमल भक्ति दो माता
एक दीप
चन्दन वन
जीवन और भावना
धरती कहे पुकार के
नया उजाला देगी हिन्दी
रश्मि जगी
लौट चलो घर
वन में दीपावली
विहान हुआ
सरस्वती वंदना
कविताएँ-
जीवन
प्रश्न
मृत्यु
संपूर्ण
संकलन में-
ज्योतिपर्व - दीपक जलता
- मधुर दीपक
- मत हो हताश
मेरा भारत - मातृभूमि जय हे
जग का मेला -चंदामामा रे
नया साल -शुभ
हो नूतन वर्ष
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धरती कहे पुकार के
दूर-दूर तक फैली धरती, देखो कहे पुकार के।
ओ वसुधा के रहने वालों! रहो सर्वदा प्यार से।।
नाम अलग हैं देश-देश के, पर वसुन्धरा एक है,
फल-फूलों के रूप अलग पर भूमि उर्वरा एक है,
धरा बाँटकर हृदय न बाँटो, दूर रहो संहार से।।
कभी न सोचो तुम अनाथ, एकाकी या निष्प्राण रे!
बूँद-बूँद करती है मिलकर सागर का निर्माण रे!
लहर-लहर देती संदेश यह, दूर क्षितिज के पार से।।
धर्म वही है, जो करता है, मानव का उद्धार रे!
धर्म नहीं वह जो कि डाल दे, दिल में एक दरार रे!
करो न दूषित आँगन मन का, नफ़रत की दीवार से।।
सीमाओं को लाँघ न कुचलो, स्वतंत्रता का शीश रे!
बमबारी की स्वरलिपि में मत लिखो शान्ति का गीत रे!
बँध न सकेगी लय गीतों की, ऐसे स्वर-विस्तार से।।
राजनीति में स्वार्थ न लाओ, भरो न विष संसार में,
पशुता भरकर संस्कृति में, मत भरो वासना प्यार में,
करो न कलुषित जन-जीवन तुम, रूप-प्रणय-व्यापार से।।
आज करो "आदेश" जगत में, प्रेमालोक अपार रे!
भ्रातृ-भाव से भरा हुआ हो, जन-जन का व्यवहार रे!
जीवन का शृंगार करो तुम, एक विश्व परिवार से।।
(शतदल काव्य संग्रह से)
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