अनुभूति में
प्रो. 'आदेश' हरिशंकर
की रचनाएँ-
गीतों में-
आया मधुमास
अमल भक्ति दो माता
एक दीप
चन्दन वन
जीवन और भावना
धरती कहे पुकार के
नया उजाला देगी हिन्दी
रश्मि जगी
लौट चलो घर
वन में दीपावली
विहान हुआ
सरस्वती वंदना
कविताएँ-
जीवन
प्रश्न
मृत्यु
संपूर्ण
संकलन में-
ज्योतिपर्व - दीपक जलता
- मधुर दीपक
- मत हो हताश
मेरा भारत - मातृभूमि जय हे
जग का मेला -चंदामामा रे
नया साल -शुभ
हो नूतन वर्ष
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मृत्यु
मृत्यु आती नहीं,
जाती नहीं।
यह तो मील के पत्थर की तरह
सदैव अचल खड़ी रहती है,
जो
हर जीवन पथिक का
लक्ष्य होता है,
आगे बढ़ने के लिए।
मृत्यु
एक पर्वत है,
अविचल,
अटल,
अक्षय,
जहाँ जीवन-घन
चलकर स्वयं ही पहुँचते हैं;
और झिमिर-झिमिर बरस कर
स्वयं बिखर जाते हैं।
पुन:
जीवन बनकर उड़ने के लिए।
बहने के लिए।
मृत्यु
अथाह सागर है,
जहाँ,
हर जीवन-सरिता
स्वयंमेव शाश्वत प्रवाह ले,
बहती जाती है।
और,
एक दीर्घ पथ पार कर
लय हो जाती है,
स्वयं सिन्धु में
सिन्धु बनने के लिए।
जीवन गति है,
मृत्यु अगति।
जीवन क्षति है,
मृत्यु अक्षति।
अतएव ओ जीवो!
चलते रहो,
पथिक बनकर।
बादल बनकर।
सरिता बनकर।
क्योंकि समय की
भयंकर प्रवाहमयी धारा
तुम्हें चाहते हुए भी
रुकने नहीं देगी।
जो कुछ करना है,
अच्छा है
प्रसन्नता से करो।
जी लगाकर करो।
ताकि दु:ख सुख बन सके,
आकुलता आनन्द,
और मृत्यु जीवन।।
(लहरों के संगीत काव्य संग्रह से)
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