रश्मि जगी
रश्मि जगी, प्रेम पगी
उगा अरुण राग री।
मुदित-मुखी मलयसखी,
गा उठी विहाग री।।
शिथिलांचल, दृग चंचल
अधर सजल, उर प्रांजल
पुलकित तन, गति मंथर,
स्वप्नाप्लावित अंतर।
थकी-थकी, जगी-जगी,
अलसायी प्रणय-पगी।
निशा चली, खिली-खिली,
ले सुघर सुहाग री।
मुदित-मुखी मलयसखी,
गा उठी विहाग री।।
सोती थी द्रुम-दल पर
विटप-बाहु-संबल पर।
यौवन से अनिभिज्ञा,
अस्त-व्यस्त परिसज्जा।
जलजा-सी, सुरजा-सी,
कोमल जीवनजा-सी।
कली खिली नई-नई,
ले नवल पराग री।
मुदित-मुखी मलयसखी,
गा उठी विहाग री।।
प्राची के बागों में
पश्चिम के गाँवों में।
उत्तर के भागों में
दक्षिण-तड़ागों में,
जागृति के कमल खिले,
नवल-नवल धुले धुले।
जाग उठी रूप-वीण,
ले नवीन राग री।
मुदित-मुखी मलयसखी,
गा उठी विहाग री।।
(अनुराग- महाकाव्य से)
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