अनुभूति में
नीलम जैन
की
रचनाएँ—
नयी रचनाओं में-
ओ मेरे क्षितिज
तुम और मैं
तुम ही तुम
रंग भरी प्रात
योग वियोग
गीतों में-
बर्फ
बसंत
पढ़ पढ़ अखियाँ भर आई
माँ होना और माँ का होना
अंजुमन में —
ऐ सितारों
बेसबब
समझ बैठे
संकलन में —
धूप के पाँव–
दोपहर
वर्षा मंगल–
सावन का बदरा
प्रेमगीत–
राधा कर देना
गुच्छे भर अमलतास–
अलसा महीना
तुम्हें नमन–
श्रद्धांजलि
ज्योति पर्व–
दीप जलाएँ
एक दीप तुम्हारा भी है
होली है– ऋतु
होली की आई
– रंग
उड़ाती आई होली
काव्यचर्चा में
—
यों
हुई शुरुआत |
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योग वियोग
सम विषम के भेद
सीख गई थी जतन बिना
सादे शब्द सादा हिसाब
सन्धि विच्छेद कर
अब समझ लूँगी
सार और विस्तार
हो जायेगा
जीवन आसान
यर्थाथ के धरातल की
प्रयोगशाला में शब्द खरे न उतरे
सम लगा देने से समता नहीं
अलगाव में विषमता नहीं
पास रह कर भी सिसकता वियोग
और कभी मीलों की दूरी
कहलाती है योग
१ जुलाई २०२३
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