अनुभूति में
नीलम जैन
की
रचनाएँ—
नयी रचनाओं में-
ओ मेरे क्षितिज
तुम और मैं
तुम ही तुम
रंग भरी प्रात
योग वियोग
गीतों में-
बर्फ
बसंत
पढ़ पढ़ अखियाँ भर आई
माँ होना और माँ का होना
अंजुमन में —
ऐ सितारों
बेसबब
समझ बैठे
संकलन में —
धूप के पाँव–
दोपहर
वर्षा मंगल–
सावन का बदरा
प्रेमगीत–
राधा कर देना
गुच्छे भर अमलतास–
अलसा महीना
तुम्हें नमन–
श्रद्धांजलि
ज्योति पर्व–
दीप जलाएँ
एक दीप तुम्हारा भी है
होली है– ऋतु
होली की आई
– रंग
उड़ाती आई होली
काव्यचर्चा में
—
यों
हुई शुरुआत |
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ओ मेरे क्षितिज
एक न एक दिन तो पा लूँगी
मैं चली क्षितिज की ओर
सुबह सवेरे निकली घर से
गीत सुहाने लगे हवा के
पलकों पर बैठी नींदे थीं
मीठी लगती भोर
मैं चली क्षितिज की ओर
थोड़ी सिकती धूप चढ़ी थी
किरणें पगपग साथ चलीं थीं
नन्हीं थीं बूँदे बरखा की
नाच उठा मन मोर
मैं चली क्षितिज की ओर
साँझ सुनहरी ढलने आयी
रंग कर अम्बर को मुस्काई
तुम दिखते हो सागर से
हृदयताल मचा है शोर
मैं चली क्षितिज की ओर
रात ढली पर मैं न मानूँ
दूर हो तुम पास न जानूँ
पहुँच ही जाऊँगी तुम तक
थाम प्रीत की डोर
मैं चली क्षितिज की ओर
राम श्याम क्या नाम तुम्हारे
रिश्ते नाते कौन हमारे
नहीं जानती मैं मुक्ति क्या
या जीवन है चोर
मैं चली क्षितिज की ओर
१ जुलाई २०२३
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