होली है!!

 

ऋतु होली की आई



होली है और धूम मची है
नई उमंग से धरा सजी है

प्रात: गुलाबी किरणों का है
रंगो से है छुपा छुपाई
आओ सखी री भीगी मेंहदी
फिर से ऋतु होली की आई

होली है और धूम मची है
नई उमंग से धरा सजी है

लहरों-सा मन इत उत डोले
नटखट हो बरसा रंग रास
आलिंगन में लिपटी चाहें
बौछारों से पुलकित गात

होली है और धूम मची है
नई उमंग से धरा सजी है

लहराया जो पवन हिंडोला
चुनरी का आँचल विस्तार
ध नि ध प बूँदे टपकीं
मुस्काता बैठा अभिसार

होली है और धूम मची है
नई उमंग से धरा सजी है

-नीलम जैन

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter