अनुभूति में
नीलम जैन
की
रचनाएँ—
नयी रचनाओं में-
ओ मेरे क्षितिज
तुम और मैं
तुम ही तुम
रंग भरी प्रात
योग वियोग
गीतों में-
बर्फ
बसंत
पढ़ पढ़ अखियाँ भर आई
माँ होना और माँ का होना
अंजुमन में —
ऐ सितारों
बेसबब
समझ बैठे
संकलन में —
धूप के पाँव–
दोपहर
वर्षा मंगल–
सावन का बदरा
प्रेमगीत–
राधा कर देना
गुच्छे भर अमलतास–
अलसा महीना
तुम्हें नमन–
श्रद्धांजलि
ज्योति पर्व–
दीप जलाएँ
एक दीप तुम्हारा भी है
होली है– ऋतु
होली की आई
– रंग
उड़ाती आई होली
काव्यचर्चा में
—
यों
हुई शुरुआत |
|
तुम ही
तुम
ओस की पावन छुवन सी
स्मृति चंचल है साथ तुम्हारी
गुदगुदाए आज भी यों
तुमने ज्यों मेरी लटें सँवारी
पत्र तुम्हारे अब भी मुझको
कल के लिखे से लगते हैं
तुम नहीं हो साथ फिर भी
परछाईं बन संग चलते हैं।
हाँ, तुमको आतीं थी बातें
कैसे इतना कह लेते थे
आलिंगन में बांध हमें
हर रग में तुमही बह लेते थे
मौन हो तुम पर सुन लेती हूँ
कानों में वो प्रेम मनुहारें
अनसोई रातों की करवट
मीठी घुलती बढ़ती सासें
बिन परिधि के चल कर जाना
केंद्र तुम्ही परिमाप तुम्हीं हो
आज भी तुम औ कल भी तुम ही
मुक्त भी तुम संसार तुम्हीं हो
इस जीवन को प्राण तुम्ही हो
विरह का विज्ञान तुम्हीं हो
दूर हो फिर भी निकट हो मेरे
एक तुम हो तुम ही तुम्हीं हो
१ जुलाई २०२३ |