अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में नीलम जैन की
रचनाएँ —

गीतों में-
बर्फ
बसंत
पढ़ पढ़ अखियाँ भर आई
माँ होना और माँ का होना

अंजुमन में —
ऐ सितारों
बेसबब
समझ बैठे

संकलन में —
धूप के पाँव– दोपहर
वर्षा मंगल– सावन का बदरा
प्रेमगीत– राधा कर देना
गुच्छे भर अमलतास– अलसा महीना
तुम्हें नमन– श्रद्धांजलि
ज्योति पर्व– दीप जलाएँ
 एक दीप तुम्हारा भी है
होली है– ऋतु होली की आई
 – रंग उड़ाती आई होली

काव्यचर्चा में —
यों हुई शुरुआत

माँ होना और माँ का होना

माँ होना और माँ का होना
दोंनों पहलू देख रही हूँ
नेह भरा संबध सलोना
नयन बसाए देख रही हूँ

बह जाती हूँ मैं नदिया सी
जगत अंक में भर लेती हूँ
राहें चाहे जंहा बना दूं
दीवानापन देख रही हूँ
बरबस लहरों का मिट जाना
शांत समंदर देख रही हूँ

माँ होना और माँ का होना
दोंनों पहलू देख रही हूँ

और कभी जब तड़पी हूँ मैं
बादल के सीने से निकली
बरसी मुक्त धरा के आँगन
सिमटी आँचल देख रही हूँ
माँ की धड़कन ताल मेल का
नृत्य सुहाना देख रही हूँ

माँ होना और माँ का होना
दोंनों पहलू देख रही हूँ

अब जो र्दपण में झाकूँ मैं
माँ का अक्स उभर आता है
सात संमदर पार से देखो
स्वर ममता का देख रही हूँ
तेरी आँखें मेरी आँखे
कितनी पास हैं देख रही हूँ

माँ होना और माँ का होना
दोंनों पहलू देख रही हूँ

जब जब मैं लोरी गाती हूँ
राग भी तेरे बोल भी तेरे
भाव विभोर स्वयं सो जाना
स्वप्निल जादू देख रही हूँ
चाहूँ मैं चाहे न चाहूँ
अखंड ज्वाल सी देख रही हूँ

माँ होना और माँ का होना
दोंनों पहलू देख रही हूँ

९ मई २००५
 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter