वही कहानी
वही कहानी मत दुहराओ, मेरा मन हो
विकल न जाए
भावुकता की बात और है
प्रीत निभाना बहुत कठिन है
यौवन का उन्माद और है
जनम बिताना बहुत कठिन है
आँचल फिर तुम मत लहराओ, पागल मन है
मचल न जाए...
दरपन जैसा था मन मेरा
जिसमें तुमने रूप सँवारा
तुम्हें जिताने की ख़ातिर मैं
जीती बाज़ी हरदम हारा
मेघ नयन में मत लहराओ, सारा सावन
पिघल न जाए...
तोड़ा तुमने ऐसे मन को
पुरवा जैसे तोड़े तन को
सोचो मौसम का क्या होगा
बादल यदि छोड़े सावन को
मन चंचल है मत ठहराओ, अमरित ही हो
गरल न जाए...
कदम-कदम पर वंदन करके
यदि मैं तुमको जीत न पाया
कमी रही होगी कुछ मुझमे
जो तुमने संगीत न पाया
तान मगर अब मत गहराओ, जीवन हो फिर
तरल न जाए...
|