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अनुभूति में कृष्ण बिहारी की रचनाएँ -

गीतों में—
आवारा मन
कितने तूफ़ानों से
कुछ न कहूँगा
गीत गुनगुनाने दो
तुम आए तो
तुम साथ चलो
दिल हँसते हँसते रोता है
दूर न जाते
देवता मैं बन न पाया
प्रीत- नौ चरण
राह जिस पर मैं चलूँ
रुपहले गीत का जादू
वही कहानी
साथ तुम्हारे
स्मृति

संकलन में—
ज्योतिपर्व–    चाँदनी की चूनर ज़मीं पर है
         –  मत समझो पाती
जग का मेला– झरना

 

स्मृति

उँगली पकड़ पिता की पहली बार जहाँ मैं खड़ा हुआ,
यह वही गाँव है बंधु! जहाँ मैं पला और फिर बड़ा हुआ,

कच्चे घर, कच्ची दीवारें
रिश्तों की पक्की मीनारें
मेरे मन में बसी हुई हैं!
नाव-नदी औ' वे पतवारें,
जैसे किसी अंगूठी में हो कोई नगीना जड़ा हुआ,

यह वही गाँव है
पीपल-नीम-आम और बरगद
इन पेड़ों के ऊँचे से कद
खेतों में जो फसल खड़ी है
उस पर फूल-फलों की आमद,
धन और धान्य जहाँ पर अब भी बिखरा-सा है पड़ा हुआ,

यह वही गाँव है
बरसों बाद यहाँ आया हूँ
भीतर-बाहर भर आया हूँ
धूल-धूसरित हर बालक में
अपने बचपन को पाया हूँ,
कैसा है यह प्राप्य कि जैसे निर्धन का धन गड़ा हुआ,

यह वही गाँव है

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