कुछ न कहूँगा
चाहे यह ज़िंदगी खंगालो
या तुम इसकी रूह निकालो
ठंडी आहें नहीं भरूँगा मैं सब कुछ
चुपचाप सहूँगा
अब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा
मैंने कभी विरोध न माना
हर अनुरोध तुम्हारा माना
मान तुम्हारा रख पाऊँ यह कोशिश मैं दिन-रात करूँगा
अब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा
दुख से मेरा वैर नहीं है
कोई रिश्ता ग़ैर नहीं है
यदि वह मेरा साथ निभाए तो मैं उसके साथ रहूँगा
अब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा
बहुत मौत से डरते होंगे
वे जीते-जी मरते होंगे
मैं उनमें से नहीं बंधु! जो समझौतों की मार सहूँगा
अब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा
तुम भटको तो वापस आना
मन में कोई बात न लाना
दरवाज़े पर जब पहुँचोगे तुम्हें द्वार पर खड़ा मिलूँगा
तब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा
अब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा
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