तुम आए तो
तुम आए तो रंग मिले थे
गए तो पूरी धूप गई
शायद इसको ही कहते हैं
किस्मत के हैं रूप कई
भटकी हुई उदास नदी में कितनी बार बहेंगे हम
फूल-फूल तक बिखर गए हैं
पत्ते टूट गिरे शाखों से
एक तुम्हारे बिना यहाँ पर
जैसे हों हम बिन आँखों के
फिर भी इस अँधियारे जग में हँसकर
यार रहेंगे हम
हृदय तुम्हारे हाथ सौंपकर
प्यार किया पागल कहलाए
तुमसे यह अनमोल भेंट भी
पाकर कभी नहीं पछताए
यहीं नहीं उस दुनिया में भी यह सौ बार कहेंगे हम
संधि नहीं कर सके किसी से
इसी लिए प्यासा यह मन है
इतने से ही क्या घबराएँ
यह तो पीड़ा का बचपन है
इसे जवान ज़रा होने दो वह भी भार सहेंगे हम
मिलने से पहले मालुम था
अपना मिलन नहीं होगा प्रिय
अब किस लिए कुंडली देखें
कोई जतन नहीं होगा प्रिय
कल जब तुम इस पार रहोगे तब उस पार रहेंगे हम
|