दिल हँसते-हँसते रोता है
ना जाने यह क्यों होता है!
जैसे-जैसे यह शाम ढले
मन स्मृतियों के साथ चले
कभी याद अंगारा बनती है
कभी लगे कि जैसे बर्फ़ गले,
यह अनुभव भी क्या अनुभव है
दिल हँसते-हँसते रोता है!
सुखमय यादें सपनीली-सी
कर जाती हैं आँखें गीली-सी
जब दुख की याद उभरती है
हर राह लगे पथरीली-सी,
यह बात सभी को मालूम है
पानेवाला ही खोता है!
सुख के पल आते-जाते हैं
खुशियों से मिलन कराते हैं
यह चक्र ही उल्टा-सीधा है
जो दुख भी हम सब पाते हैं,
जो भार कहीं दिखता ही नहीं
हर शख़्स उसे क्यों ढोता है!
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