देवता मैं बन न पाया
मोड़ कर मैं राह अपनी
छोड़ कर हर चाह अपनी
अब अकेला चल रहा हूँ कारवाँ मैं बन
न पाया।
जो मिला सीढ़ी समझकर
हो गया उस पार चढ़कर
बस बचाने में सभी को मर मिटा मैं बन न पाया।
मैं बुरा हूँ मानता हूँ
मैं
यह हक़ीक़त जानता हूँ मैं
क्या करूँ मैं मित्र मेरे! देवता मैं बन न पाया।
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