कितने तूफ़ानों
से
कितने तूफ़ानों से गुज़रा,
कितनी गहराई में उतरा
दोनों का ही कुछ पता नहीं,
बस ऐसे जीवन बीत गया
राजीव-नयन तो नहीं मगर
मदभरे नयन कुछ मेरे थे।
इन उठती-गिरती पलकों में
ख़ामोश सपन कुछ मेरे थे।
कुछ घने-घनेरे-से बादल
कब बने आँख का गंगाजल
दोनों का ही कुछ पता नहीं
बस ऐसे जीवन बीत गया
कब कैसे यह घट रीत गया
जगती पलकों पर जब तुमने
अधरों की मुहर लगाई थी
तब दूर क्षितिज पर मैंने भी
यह दुनिया एक बसाई थी
कितनी क़समें कितने वादे
आकुल-पागल कितनी यादें
दोनों का ही कुछ पता नहीं
किस भय से मन का मीत गया
मैं हार गया वह जीत गया
तुम जबतक साथ सफ़र में थे
मंज़िल कदमों तक खुद आई
अब मंज़िल तक ले जाती है
मुझको मेरी ही तनहाई
कब क्रम टूटा कब धूप ढली
उतरी कब फूलों से तितली
दोनों का ही कुछ पता नहीं
कब मुझसे दूर अतीत गया,
बस ऐसे जीवन बीत गया
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