आसमाँ से दीप आज उतरे हैं
चारों तरफ़ यहाँ वहाँ बिखरे हैं
चाँदनी की चूनर ज़मीन पर है
गोटे-गोटे भी सभी उभरे हैं
हर किरन उजाले की बताती है
ज़िंदगी दिया है साँस बाती है
प्यार जो मिले तो सब वार दे वहीं
और न मिले तो बड़ी थाती है
क्या शिकायत करें उस अँधेरे से
हम खुशी से डूबे औ उबरे हैं
आसमाँ से दीप आज उतरे हैं
चारों तरफ़ यहाँ-वहाँ बिखरे हैं
दो दिए नयन के मेरे व तेरे
शाम जले और जले हैं सवेरे
हरदम यही तो आस मन में रही
मिट के रहेंगे हमारे अँधेरे
कुछ न हुआ तो भी कोई ग़म नहीं
शीशों के आगे हम तो खरे हैं
आसमाँ से दीप आज उतरे हैं
चारों तरफ़ यहाँ-वहाँ बिखरे हैं
-कृष्ण बिहारी
|