रुपहले रूप का जादू
रूपहले रूप का जादू
चला है इस तरह मुझ पर
कि अपने आप से ही मैं
अचानक खो गया मिलकर,
बयाँ होती नहीं हालत
रहा अब होश ही क्या है
तुम्हारा दोष ही क्या है।
नयन जब बाँध लेते हैं
हृदय के तार को कसकर
मोहब्बत घर बनाती है
सपन की साँस में बसकर,
ठिकाना जो मिले ऐसा
उसे अफ़सोस ही क्या है,
तुम्हारा दोष ही क्या है।
भ्रमर-सा डोलता मन है
निराले रूप के पीछे
विवश-सा यह करे प्रतिपल
तुम्हारी ओर ही खींचे,
कलंकित क्यों करूँ तुमको
कि तुमसे रोष ही क्या है,
तुम्हारा दोष ही क्या है।
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