राह जिस पर मैं चलूँ...
तुम ज़रा-सा साथ दो तो चार डग मैं भी चलूँ
हर अंधेरे से लडूँ मैं एक दीपक-सा जलूँ।
मैं बनूँ साहस सभी का
अब न हारे मन किसी का
अब न कोई ख़ौफ़ खाए
अब न उजड़े दिल किसी का
प्यार बनकर ही रहूँ मैं
प्यार बनकर ही पलूँ,
तुम ज़रा-सा साथ दो तो चार डग मैं भी चलूँ।
बस चमककर ही बुझूँ
चाह ऐसी भी नहीं है,
खोज लूँ आसान-सी वह
राह ऐसी भी नहीं है,
यदि पड़े ढलना मुझे तो सूर्य-सा ही मैं ढलूँ,
तुम ज़रा-सा साथ दो तो चार डग मैं भी चलूँ।
मैं जवानी की निशानी
मैं जवानों की जवानी
स्नेह जिसकी भूख बनकर
माँगता है आग-पानी,
जग चलेगा राह मेरी राह जिस पर मैं चलूँ
हर अंधेरे से लडूँ मैं एक दीपक-सा जलूँ।
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