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अनुभूति में कृष्ण बिहारी की रचनाएँ -

गीतों में—
आवारा मन
कितने तूफ़ानों से
कुछ न कहूँगा
गीत गुनगुनाने दो
तुम आए तो
तुम साथ चलो
दिल हँसते हँसते रोता है
दूर न जाते
देवता मैं बन न पाया
प्रीत- नौ चरण
राह जिस पर मैं चलूँ
रुपहले गीत का जादू
वही कहानी
साथ तुम्हारे
स्मृति

संकलन में—
ज्योतिपर्व–    चाँदनी की चूनर ज़मीं पर है
         –  मत समझो पाती
जग का मेला– झरना

 

राह जिस पर मैं चलूँ...

तुम ज़रा-सा साथ दो तो चार डग मैं भी चलूँ
हर अंधेरे से लडूँ मैं एक दीपक-सा जलूँ।

मैं बनूँ साहस सभी का
अब न हारे मन किसी का
अब न कोई ख़ौफ़ खाए
अब न उजड़े दिल किसी का

प्यार बनकर ही रहूँ मैं प्यार बनकर ही पलूँ,
तुम ज़रा-सा साथ दो तो चार डग मैं भी चलूँ।

बस चमककर ही बुझूँ
चाह ऐसी भी नहीं है,
खोज लूँ आसान-सी वह
राह ऐसी भी नहीं है,

यदि पड़े ढलना मुझे तो सूर्य-सा ही मैं ढलूँ,
तुम ज़रा-सा साथ दो तो चार डग मैं भी चलूँ।

मैं जवानी की निशानी
मैं जवानों की जवानी
स्नेह जिसकी भूख बनकर
माँगता है आग-पानी,
जग चलेगा राह मेरी राह जिस पर मैं चलूँ
हर अंधेरे से लडूँ मैं एक दीपक-सा जलूँ।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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