ज़ख्म़ी होठों पे
ज़ख़्मी होठों पे खुशी का
गीत-सा अच्छा लगे
आदमी में इस बला का हौसला अच्छा लगे।
छोड़ देगा एक दिन वो मुझको मेरे
हाल पर
उसके पहलू में मगर यह वसवसा अच्छा लगे।
मौजजन है मुफ़लिसी का दर्द कासे
में मगर
फिर भी मुझको वो भिखारी ख़ुशनुमा अच्छा लगे।
इंतिहा-ए-ग़म का शायद अब असर
होने लगा
वहशतें अच्छी लगें, हर हादिसा अच्छा लगे।
हर तरफ़ उलझन के डेरे, हर तरफ़
तन्हाइयाँ
दिल हमारा सब तरफ़ से मुब्तला अच्छा लगे। |