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अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
हम जितने मशहूर
हो अनजान

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम दीवाने
हर तरफ़

 

ग़म मेरा

गम मेरा गर गुलाब हो जाए
ज़िंदगी लाजवाब हो जाए

यूँ समेटा है दिल ने यादों को
गर लिखूँ तो किताब हो जाए

दुश्मनों की तरफ़ भी जाऊँगा
दोस्तों से हिसाब हो जाए

इम्तिहाँ ले न बेकरारी का
मेरे ख़त का जवाब हो जाए

आप नाहक खुदा से डरते हैं
शेख साहब, शराब हो जाए

तेरे कूचे में आके लगता है
जैसे मुफलिस नवाब हो जाए

खुदपरस्ती, अना ही काफी है
रुख ज़रा बेनकाब हो जाए

हश्र का दिन है, पहलू में तू है
अब मुजस्सम ये ख्वाब हो जाए

३१ अगस्त २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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