ग़म मेरा
गम मेरा गर गुलाब हो जाए
ज़िंदगी लाजवाब हो जाए
यूँ समेटा है दिल ने यादों को
गर लिखूँ तो किताब हो जाए
दुश्मनों की तरफ़ भी जाऊँगा
दोस्तों से हिसाब हो जाए
इम्तिहाँ ले न बेकरारी का
मेरे ख़त का जवाब हो जाए
आप नाहक खुदा से डरते हैं
शेख साहब, शराब हो जाए
तेरे कूचे में आके लगता है
जैसे मुफलिस नवाब हो जाए
खुदपरस्ती, अना ही काफी है
रुख ज़रा बेनकाब हो जाए
हश्र का दिन है, पहलू में तू है
अब मुजस्सम ये ख्वाब हो जाए
३१ अगस्त २००९