थक कर
थककर और किधर जाऊँगा
शाम ढलेगी, घर आऊँगा।
प्यास लबों पर रहने भी दो
प्यास बुझी तो मर जाऊँगा।
आज भले सूखा जोहड़ हूँ
बारिश होगी, भर जाऊँगा।
धुंधला हूँ, बेनूर नहीं मैं
रातें रौशन कर जाऊँगा।
तेरे दर से उम्मीदें हैं
जो देगा, लेकर जाऊँगा।
ख़ुशबू पर हक़ अपना भी है
गुल, तुझको छूकर जाऊँगा।
सन्नाटे में दम घुटता है
कमरे से बाहर जाऊँगा।
ज़ादे-सफ़र का बंदोबस्त है
ख़ाली हाथ मगर जाऊँगा।
मेरे हाल पे हँसने वाले
रोएगा, जो मर जाऊँगा। |