हम दीवाने
ख़ूं में डबोकर हम दीवाने दर्द
का चारा लिखते हैं
घर की तन्हा दीवारों पर नाम तुम्हारा लिखते हैं।
तुम नाहक़ ग़म से घबराकर
शाम-सवेरे रोते हो
हम अश्कों को शबनम, मोती, आँख का तारा लिखते हैं।
इस आबाद-ख़राबे में कुछ यादें
हैं, कुछ खंडहर हैं
कुछ सूखे पत्तों पे मौसम कल का नज़ारा लिखते हैं।
इक न इक दिन मौजेसबा से रुख़ का
आँचल सरकेगा
लिखने वाले जिसकी चितवन को महपारा लिखते हैं।
दावेदार बहुत हैं लेकिन सब कहने
से डरते हैं
हम भी कब खुलकर कह पाए, नाम तुम्हारा लिखते हैं।
दुनिया में हैं लाख सुखनवर पर
लोगों का कहना है
अपने-अपने नाम से सारे हाल हमारा लिखते हैं। |