शीशे से क्या मिलकर आए
शीशे से क्या मिलकर आए
अपने घर तक पत्थर आए
तेरे अलावा पुरशिशे-गम को
दुश्मन-दोस्त बराबर आए
शाम ढले यादों के साए
किसकी खुशबू लेकर आए
खूब तमाशे करता है दिल
क्या जाने किस-किस पर आए
ख्वाब रिहाई का फिर आया
फिर ज़ंजीर हिलाकर आए
यूँ महफूज़ रखे रब तुझको
ख़ुशी भी तुझ तक छनकर आए
और तो क्या था पास हमारे
महफ़िल में गम गाकर आए
३१ अगस्त २००९